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लेख

स्क्रीन युग में कैमरा व माइक्रोफोन पर डर को दूर कर अभिव्यक्ति में सुधार के उपाय

सुरेश वर्मा


आज के युवा समाज में यह दृश्य हर शहरों व कस्बों में सरलता से देखा जा सकता है - पुस्तक खुली है, सामने टेलीविजन चल रहा है जिसकी आवाज बंद है, स्क्रीन पर मैच चल रहा है, लैपटॉप से ई-मेल भेजी जा रही है, कानों में इअरफोन लगा है और हाथ में मोबाइल फोन पर विडियो चैटिंग भी की जा रही है यानि तीन स्क्रीन पर एक साथ काम हो रहा है। आप स्वयं को स्क्रीन युग का मानव भी कह सकते हैं।

आज स्क्रीन से हम सबका नाता कितना गहरा जुड़ गया है इसकी गिनती शायद आपने नहीं की होगी। टेलीविजन, कंप्यूटर, लैपटॉप, आई पैड, मोबाइल फोन, सिनेमा हॉल, एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, रेस्तरांओं, बैंक, अस्पतालों व न्यायालयों में हर व्यक्ति किसी न किसी स्क्रीन पर नजरें गड़ाए दिख ही जाता है। स्क्रीन सूचना, संचार, शिक्षा एवं मनोरंजन का सशक्त माध्यम है। 21वीं सदी में कार्बन आधारित मस्तिष्क के स्थान पर सिलिकोन की स्क्रीन ने ले ली है और हमारे जीवन का आधार स्क्रीन ही होता जा रहा है। आप को जानकर आश्चर्य होगा कि वर्ष 2018 में फेसबुक के उपभोक्ताओं की संख्या 219 करोड़ हो चुकी है जो विश्व के किसी देश की आबादी से अधिक है। दुनिया में इंटरनेट पर दूसरे स्थान पर यू ट्यूब का प्रयोग होता है जिसके उपभोक्ता 130 करोड़ है। हाल ही के आँकड़े बताते हैं कि विश्व की 63 प्रतिशत आबादी मोबाइल फोन का प्रयोग कर रही है। भारत में मोबाइल के उपभोक्ताओं की संख्या 100 करोड़ को पार कर रही है।

आज वास्तविक जीवन से हम इतने दूर होते जा रहे हैं कि चैटिंग, शोपिंग, गेमिंग, बैंकिंग आदि क्रियाएँ स्क्रीन पर ही हो जाती हैं। जो समय चौपाल में या कॉफी हाउस व कैंटीन में या दोस्तों के साथ गपशप में बीतता था या बच्चों को खेलने में जो आनंद आता था, उसका स्थान आज स्क्रीन ने ले लिया है। फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप आदि ने जीवन में गहरी पैठ स्थापित कर ली है जिनके बिना लोग रह ही नहीं पाते या सूना सूना जीवन महसूस करने लगते हैं।

मानव अभिव्यक्ति के दृष्टिकोण से स्क्रीन को दो माध्यमों से ग्रहण करता है - दृश्य व श्रव्य - दृश्य और इसके यंत्र है - कैमरा व माइक्रोफोन। ये दोनों यंत्र कैमरा व माइक्रोफोन अत्यंत संवेदनशील माध्यम है जिनसे हर प्रकार की संवेदना एवं भावनाओं का निरूपण होता है और यह उन्हें अधिक सजीव, सुंदर व भावुक बना देते है। परंतु इसका दूसरा पक्ष भी है। कैमरा व माइक्रोफोन के द्वारा एक कलाकार का आत्मविश्वास, भावुकता, सजीवता ही प्रदर्शित नहीं होती, बल्कि उसकी घबराहट, अधीरता, डर, भय, उत्सुकता आदि को भी दर्शकों व श्रोताओं तक ला देती है।

क्या है डर या फोबिया

अक्सर देखा गया है कि किसी भी अभिव्यक्ति में अधिकांश लोग विषय पर अच्छी पकड़ होने के बावजूद स्क्रीन पर कैमरा व माइक्रोफोन को सामने देख सहज नही रह पाते जिसके कारण उनकी अभिव्यक्ति प्रभावित होती है। यह असहजता उनके शब्दों, भावों, हरकतों व गति - सबसे प्रदर्शित होती है। इस असहजता को ही फोबिया कहा जाता है। कैंब्रिज शब्दकोष के अनुसार फोबिया किसी वस्तु या परिस्थिति से गहरा डर या नापसंदी होती है जिसके कोई स्पष्ट कारण की व्याख्या नहीं की जा सकती। हम में से अधिकांश में यह डर या असहजता हमारी अभिव्यक्ति में बाधा उत्पन्न करती है जिसके परिणामस्वरूप संगीत, मंचकला, वाचन, नाट्यकला आदि में योग्य व्यक्ति भी अयोग्य हो जाता है और स्वयं को या अपनी किस्मत को कोसता है। अधिकांश लोग इस डर के कारण कला को अभिव्यक्त करने का प्रयास ही नही करते और सदा कैमरा व माइक से दूरी बनाए रखते है जिसके कारण प्रतिभा का प्रवाह रुक सा जाता है।

मनोविज्ञान मानता है कि कैमरा व माइक फोबिया एक डर की अवस्था होती है जो विशेष परिस्थितियों व साधनों से उत्पन्न होती है। यह एक भ्रामक डर की स्थिति उत्पन्न कर देता है जिसका परिणाम हमारी प्रस्तुति को कमजोर बना देता है। इसके सूचकों को हम तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं -

1 . भौतिक या फिसिकल

2 . गैर मौखिक या नॉन वरबल

3 . मौखिक या वरबल

डर के लक्षण

फोबिया का कारण होता है हमारी असुरक्षा की भावना। प्रायः हम जैसे ही असुरक्षित अनुभव करते है, हमारा मस्तिष्क संकेत देता है - लड़ो या भागो, फाइट या फ्लाइट। आयुर्विज्ञान के अनुसार हमारे शरीर में एड्रेनल हमारे रक्त में संचार करने लगता है जिसके परिणामस्वरूप हमारे दिल की धड़कन बढ़ जाती है और रक्त का दबाब भी उच्च हो जाता है। इसके अतिरिक्त हमारे आँख की पुतली फैल जाती है, साँस तेज हो जाती है और घुटने कंपन करने लगते हैं। यही नहीं हम मनोवैज्ञानिक दबाब, असहजता, कँपकँपी, मुँह का सूखापन आदि भी अनुभव करते हैं। मौखिक संकेतों में आवाज का लड़खड़ाना या अनावश्यक रुक रुक कर बोलना शामिल होता है।

डर पर विजय

किसी भी क्षेत्र में जब हम प्रवेश करते हैं तो असहजता स्वाभाविक होती है परंतु जनसंचार के क्षेत्र में यह हमारी प्रगति में बाधक बन जाती है। इस के समाधान हेतु पाँच चरणों का सरल फार्मूला है - के ई डी ऐ पी यानि KEDAP जिस का अर्थ है -

1 . स्वयं को पहचानें। (KNOW YOURSELF)

2 . अवसरों की तलाश करें। (EXPLORE OPPORTUNITIES)

3 . निर्णय लेना सीखें। (DECESION MAKING ABILITY)

4 . कर्मशील बन कर्म करें। (ACTION)

5 . सतत्त अभ्यास करें। (PRACTICE CONTINUESLY)

सर्वप्रथम अपने को जानें, अपनी शक्तियाँ पहचानें। अपनी योग्यताओं का सही मूल्यांकन करना व सीमाओं व कमजोरियों को स्वीकार करना एक कठिन कार्य है जिसे निष्पक्ष तरीके से करने पर ही लाभ प्राप्त हो सकता है। दूसरा बिंदु है अवसरों की तलाश, यानि उन मार्गों की खोज जो आप को लक्ष्य प्राप्ति की और ले जाते हैं। इसके लिए विभिन्न स्रोत तलाशने होंगे व अनुभवी लोगों के जीवन का लाभ लेना होगा। तीसरा कदम दृढ़ निश्चय के साथ लक्ष्य का फैसला लेना होगा और अंतिम कदम उस फैसले को अंजाम देना है। हम कई बार कल्पनाएँ तो कर लेते हैं, स्वप्निल दुनिया में विचरण करने लगते हैं परंतु दृढ़ता के अभाव में उसे साकार नहीं कर पाते। सतत अभ्यास के विषय में इस दोहे को याद रखना होगा 'करत करत अभ्यास ते, जड़मति होत सुजान। रसरी आवत जात ते, शिलपर पड़त निशान।।' अर्थात अभ्यास से मूर्ख व्यक्ति भी काबिल हो जाता है जैसे पत्थर पर रस्सी बार बार घिसने से निशान बन जाता है। यद्यपि यह पाँच कदम चलना सरल नहीं है, परंतु मजबूत इरादों व सतत प्रयासों से सफलता अवश्यंभावी है।

डर का सामना कैसे करें ?

कहा गया है कि दुनिया में मौत के डर के बाद सबसे अधिक लोग मंच से बोलने से ही डरते हैं। ऐसे में मंच पर यदि माइक व कैमरा हो तो स्वाभाविक है डर का अधिक बढ़ जाना, परंतु सही जानकारी व निरंतर प्रयासों से इस डर को दूर भगाया जा सकता है। अनेक कलाकारों से जब हमने यह सवाल किया तो उनका कहना था कि इसके लिए कुछ ठोस कदम उठाने होंगे।

1 . विषय का पूर्ण ज्ञान हासिल करें - यदि किसी भी प्रस्तुति के विषय पर हमारा ज्ञान गहरा हो तो हम सबल होते हैं और इस के विपरीत यदि हमारी शंका पहले से ही बनी होती है तो आत्मविश्वास में कमी दिखाई देती है।

2 . योग अभ्यास सरल व महत्वपूर्ण उपाय - किसी भी डर का कारण होता है - हलचल की स्थिति जिसमें संवेदनाओं की तेज लहरें उत्पन्न होने लगती हैं व मन विचलित हो जाता है। इस मन को स्थिरता व संवेदनाओं पर नियंत्रण योगाभ्यास द्वारा किया जा सकता है।

3 . सामना करना सीखें - डर से दूर भागने की जगह डर का डट कर सामना करना सीखिए। कुछ न करने से भय विकसित होता है और उसी कार्य को अनेकानेक बार करने से, अभ्यास से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।

4 . आत्मविश्वास बोल कर बढ़ाएँ - स्वयं को बार बार कहें - 'मैं विजय हासिल कर लूँगा/लूँगी या विजय मेरी ही होगी - कल्पना करें आप बिना डर के अपनी प्रस्तुति दे रहे हैं और लोग तालियाँ बजा कर आपका अभिनंदन व प्रोत्साहन कर रहे हैं।

5 . ज्ञान में वृद्धि करें - आप का जो क्षेत्र कमजोर है, उसके विषय में अधिकाधिक जानकारी प्राप्त करें व अपने कौशल का विकास करते रहें - प्रसिद्ध लेखक एमर्सन कहते हैं कि जिसने प्रतिदिन किसी भय पर विजय हासिल नही की, उसने जीवन का रहस्य ही नहीं समझा।

6 . आत्मग्लानि से बचे स एक बार असफल होने पर स्वयं को कसूरवार समझ आत्मग्लानि का अनुभव न करें। 'किसी कार्य में प्रतिभागी होना भी सरल कार्य नहीं होता फिर हमारा सारा ध्यान केवल पुरस्कार पर ही क्यों केंद्रित हो जाए' जब यह दर्शन समझ आ जाता है तो डर स्वयं ही काफूर हो जाता है।

7 . जीत का आनंद मनाना सीखें - आप अपनी हर जीत की खुशी मनाएँ और हार जाने पर व्याकुल न हों बल्कि गिर कर फिर से लड़ने की शक्ति अपने अंदर जागृत करें।

8 . डर के बारे में अधिक चिंतन न करें - इसी बात को हेनरी फोर्ड ने बहुत सुंदरता से कहा - 'मानव की सबसे बड़ी उपलब्धि/खोज उस कार्य को करना है जिस का उसे डर था कि वह उसे नही कर सकता।

9 . नकारात्मक सोच, विचारों व लोगों से बचें - कुछ लोगों का व्यवहार डरने वालों को डराना व गिरने वाले को अधिक जोर के धक्का देना होता है - सकारात्मक सोच वाले हमेशा सहयोग देने का ही प्रयास करते हैं और डर कम होने लगता है।

समस्या का समाधान

अधिकांश कलाकारों से जब हमने बातचीत की तो इस समस्या का समाधान उन्होंने बताया - स्वयं पर विश्वास, सकारात्मक सोच तथा अपनी गति से विकसित होने की ललक व अपनी शैली पर विश्वास। साथ ही अपनी गलतियों से सीखने की कोशिश करना हमें लक्ष्य के निकट पहुँचने में सहयोग देती है। हमने उनसे जाना - उन सरल परंतु कारगर उपायों के बारे में जो हमारे विश्वास की वृद्धि करने में सहायक होते हैं -

1 . किसी भी प्रस्तुति के लिए निश्चित स्थान या स्टूडियो में समय से कुछ पहले पहुँचने का प्रयास करें। इससे आपका आत्मविश्वास बढ़ता है।

2 . उन कपड़ों का चुनाव करें जिन्हें पहन कर आप अधिक प्रसन्न होते हैं। कैमरे पर आप के व्यक्तित्व में आप का लिबास अहम भूमिका अदा करता है।

3 . अपनी रीढ़ की हड्डी को सदैव सीधा रखें। चाहे आप खड़े हों या बैठें, आपकी शारीरिक मुद्रा आप की शक्ति का परिचायक होती है और आप के आत्मविश्वास को भी दर्शाती है।

4 . आँखों से मुस्कान बाँटना सीखिए। यह एक कठिन क्रिया है जो आपकी सफलता का कारक बनती है फिल्मों में यह एक गुण व्यक्ति को हीरो या हिरोइन का पद दिलाने में भी सहायक होता है।

5 . प्रस्तुतिकरण जितना हो सके, स्वाभाविक बनाएँ। आपकी आवाज कृत्रिम है या स्वभाविक यह आप जानते है परंतु श्रोताओं को कलाकार की स्वाभाविक प्रस्तुति अधिक पसंद आती है। इसलिए अपने स्वर, भाव व गति को सरल व स्वभाविक ही रखें।

6 . 'न' कहना सीखिए - एक कलाकार अपनी योग्यता जानता है और ऐसा कोई कार्य जो आपकी परिधि में न हो, उसके लिए 'न' कहना वह अच्छी तरह से जानता है।

7 . प्रस्तुति से पूर्व एक लंबी साँस लें। आपकी साँस अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। जब आप कैमरा या माइक के सामने आएँ, तो साँस पर पूर्ण नियंत्रण रखें। लंबे वाक्यों के लिए साँस फूलने न दें और अपने डर पर पूर्ण नियंत्रण रखें।

8 . अपनी गलतियों से सीखें और उनसे डरें नहीं। आप पहली ही बार संपूर्ण नहीं बन सकते। हर बार सीखने की आदत आप के आत्मविश्वास को बढ़ाने में सहायक हो सकती है।

9 . सहजता व सकारात्मकता ऐसे गुण है जो कैमरा पर आप के व्यक्तित्व को अधिक प्रभावोत्पादक बनाने में सहायक होते हैं। अतः सोच को नकारात्मक विचारों से बचाएँ।

10 . विचारों पर ध्यान केंद्रित करें श्रोताओं पर नहीं - यदि हमारा ध्यान विषय के केंद्र से हटकर श्रोताओं व दर्शकों पर होता है तो हम उतने ही नर्वस होते जाते हैं। जब हम किसी विषय में डूब कर प्रस्तुत करते हैं तो हमारा ध्यान दर्शकों पर जाता ही नहीं।

वाणी की प्रभावशीलता कैसे विकसित हो

हम में से बहुत कम लोग जानते हैं कि दृश्य का जितना प्रभाव हम पर पड़ता है उतना ही प्रभाव श्रव्य का भी होता है। वाचन हो या गायन हमारी आवाज की अलग ही पहचान होती है। ईश्वर द्वारा दिए चेहरे में हम अधिक परिवर्तन नहीं कर सकते परंतु आवाज को काफी हद तक सुधारा जा सकता है। आवाज में सुधार के लिए आप को अपनी श्रवण शक्ति व निरीक्षण शक्ति को तेज करना होगा। इसके लिए कुछ उपाय अपनाने होंगे जिनके बारे में हमें रेडियो प्रसारकों ने बताया -

1 . उच्चारण दोष दूर करें - हम जिस प्रदेश या परिवेश में रहते है, उसका प्रभाव हमारे उच्चारण पर भी पड़ता है। हमारी मातृभाषा का प्रभाव भी हमारे उच्चारण पर साफ दिखाई देता है। मानक उच्चारण के लिए शब्दकोष का प्रयोग करें व रेडियो व टीवी चौनल के समाचार वाचकों को ध्यानपूर्वक सुनें।

2 . भाषा का ज्ञान बढ़ाएँ - जिस भाषा में आपकी रुचि है, उसके साहित्य से आप सुपरिचित हों, उसका काव्य आपको कंठस्थ हो व प्राचीन व नवीन शब्दों की व्याख्या आप करने के अभ्यस्त हों तो आप का शब्दज्ञान निरंतर विस्तृत होगा।

3 . आवाज में उचित मोड्यूलेशन लाएँ - शब्द एक ही होते हुए उनके कहने के अंदाज से उसके मायने बदल जाते है। शब्दों व भावों के उतार-चढ़ाव से ही मूड को कायम रखा जाता है और ये काफी अभ्यास से आता है।

4 . प्रस्तुति में स्वाभाविकता लाएँ - किसी कलाकार की नकल करने का प्रयास नहीं होना चाहिए। आप का अपना अंदाज ही आप को स्वभाविक बना सकता है। परंतु बेहतर प्रदर्शन के लिए आवाज में मुस्कुराहट अवश्य लाइए।

5 . अच्छा श्रोता बनें - प्रतिभा के विकास के लिए आवश्यक है हम उन लोगों को सुनें जो इस योग्यता के धनी हैं। उनको सुनकर आप अपनी गलतियों को भली प्रकार से समझ सकते हैं।

6 . उचित लेवल व सही शब्दों पर स्ट्रेस देना सीखिए - हर व्यक्ति की आवाज का आवेग भिन्न होता है जिसे आपको समझना होगा। यदि आप मंद आवेग से बोलते हैं तो ऊँचा बोलने का अभ्यास करना होगा और इस के विपरीत यदि आप को ऊँचा बोलनेवाला कहा जाता है तो आवेग को तनिक कम करने का प्रयास करें। साथ ही उन शब्दों को रेखांकित कर लें जिन पर अधिक स्ट्रेस देने की आवश्यकता होती है।

7 . स्क्रिप्ट की आवश्यकता के अनुसार पॉज देना भी बहुत जरूरी है - वाचन व गायन दोनों में एक महत्वपूर्ण कारक है - विराम। इसके अभाव में अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है।

आज हम विचरण करते हैं शब्दों, ध्वनियों तथा चित्रों के अथाह व अनंत समुद्र में। यदि हम केवल यू ट्यूब को ही देखें तो 14 फरवरी 2005 से अब तक 13 वर्षों में असंख्य दृश्य-श्रव्य सामग्री का महासागर इसके पास संग्रहीत है। एक ओर यू ट्यूब ने स्वयं को अधिक नही बदला जहाँ से उसने आरंभ किया था परंतु दूसरी ओर लोगों को इसने कितना बदल दिया है - नर्सरी के बालक से शोधार्थी तक, निरक्षर से साक्षर, ग्रामीण से शहरी, गरीब से साहूकार, बालक से वृद्ध, हर महिला व पुरुष को दृश्य-श्रव्य सामग्री यह सहज ही उपलब्ध करा रहा है और अभिव्यक्ति का अनुपम अवसर भी प्रदान कर रहा है।

आज आवश्यकता है अपने गुणों व शक्तियों पर विश्वास कर उन्हें नए आयाम देने की, अपने प्रस्तुतिकरण में सुधार लाने की, अपनी वाणी में सत्यता, संक्षिप्तता, स्पष्टता, सशक्तिकरण व सकारात्मकता लाने की जिससे हमारी अभिव्यक्ति में शक्ति का संचार होगा व हम जीवन में कदम आगे बढ़ा सकेंगे। यदि इस स्क्रीन युग में नए आयाम से हम अपनी अभिव्यक्ति को जोड़ पाए तो हम अपने सपनों को भी साकार कर पाएँगे।

संदर्भ ग्रंथ

1 . बीबे, ए. स्टीवन; बीबे जे. सुसन, (2000), पब्लिक स्पीकिंग; अल्ल्यन एंड बेकन, बोस्टन

2 . ओ'डोंनेल्ल, बी. लेविस; हौस्मन, कार्ल; बेनोइट, फिलिप, (1991), अन्नौंसिंग; वाद्स्वोर्थ पब्लिशिंग कंपनी, कैलिफोर्निया

3 . रेअर्डों, नैंसी, (2006), ऑन कैमरा, हाउ टू रिपोर्ट, एंकर एंड इंटरव्यू; फोकल प्रेस, बुर्लिंगटन

4 . बूहर, डायना, (2011), क्रिएटिंग पर्सनल प्रेसेंस; बेर्रेत्त-कोएह्लर पब्लिशर, कैलिफोर्निया

5. ओझा, राजकिशोर, (1991), वाक् कला; उपकार प्रकाशन, आगरा


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